धूप-Sunshine

1 09 2008

आँगन में समय जब बिताती है धूप, रोशन दीवारें तब छुपाती है धूप!
इन नक्शे चेहरों का क्या कहना, चेहरे से जब घूंगता उठाती है धूप!

चल के बदल जाएँ हव्वाओं के रुख, हवा से हवा जब मिलाती है धूप!
साहिल सुन ले तू इस राग को, नदी पर चमक गुनगुनाती है धूप!

बाबुल इसे तू डोली चरहा, तारों की छाओं मैं टिमटिमाती है धूप!
सौदागर इसे यूँ नीलाम कर, कभी तेरे भी काम आती है धूप!


Actions

Information

One response

7 12 2008
उन्मुक्त

अच्छी कविता है। हिन्दी में और भी लिखिये।

Leave a comment